
जीवन में विचारो का बहुत महत्व है शायद किसी के उत्थान और पतन में दोनों में एक अग्रणी भूमिका में रहता है । विचार मिले तो सब कुछ सही और न मिले तो स्वाभाविक है विरोध । हालाँकि अगर इतिहास में देखे तो सभी युद्ध विचारो के लिए ही तो हुए है । यही कुछ देश में चल रहा है असली लड़ाई विचारो की ही है । पहले विचार विभन्न माध्यमो से थोप दिए जाते थे धार्मिक किताबो या राज्य सत्ता की परपाठी पर । लेकिन अभिव्यक्ति की स्वत्रंता से आज लोग जागरूक है और अपनी बातो को तर्कों के माध्यम से समाज में प्रस्तुत कर रहे है । यही कुछ हुआ हालिया दिनों में जेएनयू के प्रांगण में । छात्र ऊर्जा क्या है ये काफी अरसे बाद नजर आई , नहीं तो छात्र ऊर्जा की बातें चुनावो और कक्षाओ में ही सीमित सी रह गई थी । भारत युवाओ का देश है लेकिन आज भी इन युवाओ को मार्ग दर्शन की जरूरत पड़ती है । हालाँकि बीच बीच में कुछ विचारो से वे प्रभावित हुए और नए रास्तो के लिए निकल पड़े । कुछ अर्से पहले अरविन्द केजरीवाल और अन्ना हजारे जैसे लोगो ने देश में नए विचार प्रस्तुत किये जिसे नव छात्र शक्ति ने अपनाये लेकिन बाद में राजनीती के दलदल में इन छात्रो ने अपने आप को धंसा महसूस किया । आज एक नया विचार कन्हिया के रूप में आया है हालाँकि जिस विषय से अचानक ये विचार भारत के पटल पर अंकुरित हुआ वो काफी विवाद से जुड़ा रहा । भारत एक पुरष प्रधान देश है ये बात इसलिए क्योकि जब कभी हम किसी स्त्री को सड़क पर अकेला देखते है और स्वतः उसके चरति चित्रण सुरू कर देते है उसी प्रकार देश के कई लोगो ने न हकीकत समझते हुए कन्हिया का भी विवरण आपस में दे दिया हालाँकि जेल से आने के बाद उसके विचारो से बहुत से लोग प्रभावित हुए न रहे । उसके द्वारा सिस्टम को दोषी बताया गया या कहे सिस्टम ने उसे दोषी बता दिया ।
कन्हैया वामपंथी विचारधारा रखने वालों के हीरो नजर आ रहे है उनके लिए जो बेरोजगारी से , क्षेत्रवाद से, जातिवाद से ,गरीबी से , पूंजीवाद से , मुनाफाखोर से , धर्मवाद से परेशान है ,वे जो अपने आपको युवा तो कहते है लेकिन किसी पतली पगडंडी से गुजरते अपने आप को पाता है । अब समय ही बताएगा की इस नय विचार को देश की जनता और युवा कब तक अपने विचारो से सहमति देते है ।